लाल किले का कुआं और दफ्न ‘टाइम कैप्सूल’ का रहस्य

In नजरिया
October 10, 2023
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इंदिरा की सरकार ने 280 पाउंड के उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था

जन संदेश न्यूज नेटवर्क— नजरिया

यह संभवत: 1973 का वर्ष था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी बुलंदी पर थीं। उनके सलाहकारों का परामर्श था कि उन्हें समकालीन इतिहास और पूर्ववर्ती इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियां एवं दस्तावेज एक ‘टाइम-कैप्सूल’ में मुहरबंद करके तांबे और स्टील से बने एक धातु-कैप्सूल में लाल किले के सामने मौजूद एक कुएं में दबा देना चाहिए। उद्देश्य यह था कि लगभग एक हजार वर्ष बाद जब ‘कैप्सूल’ खोला जाएगा तो उसके माध्यम से अगली पीढिय़ों के सामने वही तथ्य आएंगे जो कैप्सूल में बंद करके कुएं में दबाए गए थे। यह ‘कैप्सूल’ 32 फीट की गहराई में द$फनाया गया था और उसमें लगभग 10 हज़ार शब्दों पर आधारित एक दस्तावेज़ था।

  • चलिए पहले जान लें क्या होता है ‘टाइम कैप्सूल’

यह टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है। इसे एक खास किस्म की सामग्री से बनाया जाता है। इसकी तुलना कहीं हद तक प्लेन में लगने वाले ब्लैक बॉक्स से कर सकते हैं। हालांकि ब्लैक बॉक्स की तुलना में टाइम कैप्सूल को सदियों तक के लिए सुरक्षित रखा जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है।


यह एक कंटेनर की तरह दिखता है जिसे विशेष प्रकार के तांबे (कॉपर) से बनाया जाता है और इसकी लंबाई करीब तीन फीट होती है। इस तांबे की विशेषता यह होती है कि यह सालों साल खराब नहीं होता है और सैकड़ों हजारों साल बाद भी इसे जब जमीन से निकाला जाएगा तो इसमें मौजूद सभी दस्तावेज पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं। टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है। यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है। इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युगए समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है।
हालांकि यह व्यापक रूप से बताया गया था कि इंदिरा गांधी के टाइम कैप्सूल का पता जनता पार्टी सरकार ने लगाया था लेकिन इसकी सामग्री अभी भी एक रहस्य बनी हुई है।


वर्ष 2013 में शिक्षाविद और लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने प्रधान मंत्री कार्यालय से टाइम कैप्सूल के बारे में जानकारी मांगी थी। हालांकि पीएमओ ने कथित तौर पर दावा किया कि उसके पास पूर्व प्रधान मंत्री के टाइम कैप्सूल प्रोजेक्ट का कोई रिकॉर्ड नहीं है।


जनता पार्टी सरकार ने टाइम कैप्सूल की सामग्री के बारे में कभी भी विवरण नहीं दिया। कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उस समय के कुछ दिग्गज पत्रकारों ने दावा किया था कि इंदिरा गांधी और उनके पिता जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धियां टाइम कैप्सूल की सामग्री थीं। मगर इस विषय पर कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं की गई।


पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी का भी नाम टाइम कैप्सूल से जुड़ चुका है। बात 1970 के शुरूआती दिनों की है। उस दौरान श्रीमती गांधी शिखर पर थी। उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था। सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए। आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उसमें उल्लेख किया जाना था। इंदिरा गांधी की सरकार ने 280 पाउंड के उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था। इस टाइम कैप्सूल को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1973 को लाल किले के परिसर में दफन किया था। इस कालपात्र को लेकर उस समय काफी हंगामा मचा था।


विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है। 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया था कि पार्टी कालपात्र को खोदकर निकालेगी और देखेगी कि इसमें क्या है। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था। सारा ब्यौरा रहस्य बना हुआ है।


टाइम कैप्सूल को लेकर आरोप वर्तमान सरकार पर लगते रहे हैं। बात 2011 की है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है जिसमें वर्तमान प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है। तीन फीट लंबे और ढाई फीट चौड़े इस स्टील सिलेंडर में कुछ लिखित सामग्री और डिजिटल कंटेट रखा गया था। सरकार के मुताबिक कैप्सूल में गुजरात के पचास साल का इतिहास संजोया गया था। हालांकि तब कांग्रेस की ओर से इसका काफी विरोध किया। पार्टी ने आरोप लगाया कि टाइम कैप्सूल के माध्यम से मुख्यमंत्री इतिहास में अपना महिमामंडन करना चाहते हैं। कांग्रेस ने धमकी भी दी कि वह सत्ता में आई तो कैप्सूल निकलवा देगी।


टाइम कैप्सूल को लेकर बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर भी आरोप लग चुके हैं। बात 2009 की है जब वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। तब यह चर्चा आम थी कि मायावती ने अपनी पार्टी और खुद की उपलब्धियों से जुड़ी हुई जानकारी के दस्तावेज एक टाइम कैप्सूल में रखवाकर कहीं दफन करवाए हैं। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई।

  • 2019 में एलपीयू में दफनाया गया टाइम कैप्सूल


जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री की उपस्थिति में जनवरी 2019 में भी एक टाइम कैप्सूल दफनाया गया था। दस फीट की गहराई में एक टाइम कैप्सूल को गाड़ा गया। इसे सौ साल बाद निकाला जाएगा और 22वीं सदी के लोग देख सकेंगे कि आज के जमाने में किस तरह के सामान, गैजेट और उपकरण इस्तेमाल किए जाते थे। इस कैप्सूल में 100 सामान रखे गए हैं। इनमें लैपटॉप, स्मार्टफोन, ड्रोन, वर्चुअल रियलिटी वाले चश्मे, अमेजन एलेक्सा, एयर फिल्टर, इंडक्शन कुक टॉप, एयर फ्रायर, सीएफएल, टेप रिकॉर्डर, ट्रांजिस्टर, सोलर पैनल, हार्ड डिस्क आदि हैं।

  • अंतरिक्ष में भी भेजे गए हैं टाइम कैप्सूल


टाइम कैप्सूल के इतिहास की बाद करें तो यह सदियों पुरानी बात है। सदियों पहले भी टाइम कैप्सूल रखे जाते थे। दुनिया में कई जगहों पर टाइम कैप्सूल मिल चुके हैं। अगर बात अंतरिक्ष की करें तो इस मामले में अमेरिका सबसे आगे हैं। अमेरिका अब तब 50 से अधिक टाइम कैप्सूल को भविष्य के लिए संरक्षित रख चुका है। इनमें अंतरिक्ष में भेजे गए टाइम कैप्सूल भी शामिल हैं। अमेरिका ने अपने अपोलो-11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर टाइम कैप्सूल भेजा। इसमें पृथ्वी से जुड़ी विभिन्न जानकारी भेजी गई थी।
साभार- डॉ. चन्द्र त्रिखा

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