भारत जिसकी 80 फीसदी ग्रामीण जनता कृषि पर निर्भर तो बजट में किसानी को प्राथमिकता क्यों नहीं?
- किसान की मूल जरूरतों की तरफ और एमएसपी को लेकर भी इस बजट में कोई ठोस कदम नहींं उठाया
- बच्चों को दी जाने वाले मिड-डे-मिल स्कीम की 11500 करोड़ की राशि को घटा 10233 करोड़ किया
- मनरेगा स्कीम की सब्सिडी को घटाकर 98000 करोड़ से 73300 करोड़ कर दिया गया
- खेती में इस्तेमाल होने वाले डीजल, खाद, उर्वरक और कीटनाशकों के रेट में पिछल साल में 10-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि जनवरी 2021 से जनवरी 2022 के बीच डीजल औसत 15-20 रुपए लीटर महंगा हुआ
- वित्त मंत्री सीतारमण के अनुसार, एमएसपी के जरिए किसानों के खाते में 2.37 लाख करोड़ भेजे जाएंगे लेकिन बजट में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि सभी किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदी कैसे जाएगी
- चौधरी देवीलाल ने किसानों व कृषि सुधार हेतु बंजर भूमि के सुधार हेतु जिप्सम आदि, छोटे किसानों के लिये छोटे ट्रैक्ट्ररों पर भारी सब्सिडी देकर कृषि व्यवस्था में सुधार किये थे
- हरियाणा प्रान्त में बेरोजगारी की संख्या 23.4 प्रतिशत है जो कि पूरे देश में लगातार गत पांच वर्षों से प्रथम स्थान पर है और प्रदेश में बेरोजगारो की संख्या 25 से 30 लाख तक है।
पिछले दिनों केंद्रीय बजट में भले ही किसानों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जितना ही मिला हो लेकिन टीवी चैनल और सरकार ने किसानों की हमेशा की तरह कमर तोडऩे में कसर नहीं छोड़ी। सरकार के इस बजट साल में उनके कहे अनुसार आय दोगुनी हो जानी चाहिए थी लेकिन हकीकत ये है आय घटती चली जा रही है। असल में अगर बजट में किसानों को जो कुछ दिया गया है उसे देखकर ऐसा लगता है कि किसान कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का एक प्रतिशोध के रूप में लेकर उनसे बदला ले रही है।
किसान की मूल जरूरतों की तरफ भी इस बजट में कोई ध्यान नहीं दिया गया है। बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई हैं जिससे किसानों को फौरी तौर पर कोई राहत मिल सके। न ही ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ में मिलने वाली राशि को बढ़ाया गया है और न ही न्यूनतम समर्थन को लेकर कोई ठोस कदम बजट में उठाया गया है। कृषि व इससे जुड़े समुदाय के लिये बजट में राहत व सब्सिड़ी का कोई प्रावधान नहीं किया गया जिससे राष्ट्र का अन्नदाता वर्ग ठगा सा महसूस कर रहा है। पेट्रोल व डीजल पर गत बजट में दी गई 6517 करोड़ की सब्सिडी को घटाकर 5813 करोड़ कर दिया इसी प्रकार खाद पर 140,000 करोड़ की सब्सिडी को 105,000 करोड़, खाद्यान्नों पर 286219 की राशि को 206481 करोड़, फसल बीमा की 15989 करोड़ की सब्सिडी को 15500 करोड़ कर दिया गया यहि नहीं बजट में साधारण जनता व गरीब वर्ग के छात्रों के कल्याण, स्वास्थ्य व षिक्षा पर भी कुठाराघात किया गया है। बच्चों को दी जाने वाले मिड-डे-मिल स्कीम की 11500 करोड़ की राशि को घटाकर 10233 करोड कर दिया है। स्वास्थ्य संबंधी बजट में 85915 करोड़ से बढ़ाकर 86606 की मामली वृद्धि की गई और गरीब वर्ग के लिये महत्वपूर्ण मनरेगा स्कीम की सब्सिडी को घटाकर 98000 करोड़ से 73300 करोड़ कर दिया गया। बजट में षिक्षा सुधार व रोजगार बढ़ाने के लिये कोई प्रावधान नहीं है। हर वर्ष राष्ट्र में करोड़ों बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। आज पंजाब, हरियाणा में हर तीसरा स्नातक व चण्डीगढ़ जैसे शिक्षित शहर में हर दशवां ग्रेजुएट बेरोजगार घूम रहा है जो कि राष्ट्र के विकास व सुरक्षा के लिये भारी खतरा है। हरियाणा प्रान्त में बेरोजगारी की संख्या 23.4 प्रतिशत है जो कि पूरे देश में लगातार गत पांच वर्षों से प्रथम स्थान पर है और प्रदेश में बेरोजगारो की संख्या 25 से 30 लाख तक है।
बजट में किसानों को डिजिटल और हाईटेक बनाने के लिए पीपीपी मोड में नई योजनाएं शुरू करने, जीरो बजट खेती और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्धन (वृद्धि करना) और प्रबंधन पर जोर देने की बात कही गई हैं लेकिन ये कब होगा और कैसे होगा इसका केवल उसी तरह उम्मीद जताई जा सकती है जैसे 2022 में किसानों की आय दोगुनी हो जानी थी।
पीएम किसान योजना छोटे किसानों को बहुत लाभान्वित कर रही है और पीएम किसान सम्मान निधि के तहत देश के 12 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए दिए जाते हैं। किसानों को उम्मीद थी कि इस बजट में ये रकम बढ़ाकर 9 हजार रुपए कर दी जाएगी लेकिन इसकी भी घोषणा वो ना कर सकीं।
अगर आकडों को खंगाला जाए तो सरकार की अपनी कमेटी के हिसाब से वर्ष 2016 में देश के किसान परिवार की औसत मासिक आय 8059 थी। सरकारी कमेटी ने महंगाई का अनुमान लगाते हुए हिसाब किया कि वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लिए किसान परिवार की आय 21,146 रुपया प्रति माह हो जानी चाहिए। लेकिन वर्ष 2019 तक किसान की आय बढक़र मात्र 10,218 हुई थी उसके बाद के 3 साल से सरकार ने आंकड़े देने बंद कर दिए, किसी भी अनुमान से यह 12000 तक नहीं पहुंची है। खेती में इस्तेमाल होने वाले डीजल, खाद, उर्वरक और कीटनाशकों के रेट में पिछले एक साल में 10-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जनवरी 2021 से जनवरी 2022 के बीच डीजल औसत 15-20 रुपए लीटर महंगा हुआ है। जबकि एनपीके उर्वरक की 50 किलो की बोरी 265 से 275 रुपए महंगी हुई है। जबकि साल 2022-23 के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 40 रुपए प्रति क्विंटल और पिछले साल (खरीद विपणन सीजन 2021-22) के लिए धान की एमएसपी में 72 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई थी।
जबकि इस दौरान कीट, रोग और खरपतवार नाशक दवाओं में 10-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। खेती की बढती लागत के अलावा किसान एमएसपी से कम रेट पर बिकती फसलों से भी परेशान हैं। असल में हाल ये है कि क्विंटल धान बेचकर एक बोरी (50 किलो) डीएपी नहीं खरीद सकते। डीएपी की सरकारी कीमत 1206 रुपए है लेकिन कई जगह वो 1400-1600 में बिकती है। बजट में इस बार किसान को पिछले दो साल में अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए इनाम देना बनता था। किसान ने बार-बार कहा है उसे दान नहीं दाम चाहिए। सरकार ने घोषणा कि गेहूं और धान की रिकॉर्ड खरीद पर किसान की जेब में 2,37,000 करोड़ रुपया पहुंचाया है। आंकड़ों के आकंलन से पता लगा कि दरअसल इस साल की सरकारी खरीद पिछले साल से भी कम थी और 2,48,000 करोड़ रुपए का धान और गेहूं खरीदा गया था। इस साल सरकारी खरीद की मात्रा 1,286 लाख टन से घटकर 1,208 लाख टन हो गई थी। खरीद का फायदा उठाने वाले किसानों की संख्या भी 1.97 करोड़ से घट कर 1.63 करोड़ हो गई है।
कृषि प्रधान राष्ट्र की 80 प्रतिशत ग्रामीण जनता कृषि व इससे संबंधित कारोबार पर निर्भर है और 86 प्रतिशत किसान 2 से 2.5 एकड़ भूमि पर खेती करते है जिनको प्राथमिकता के आधार पर राहत पहुंचाने की जरूरत है। इसको राष्ट्र के पूर्व प्रधानमंत्रियों ने भी महसूस किया है। प्रधानमंत्री पं. लाल बहादुर शास्त्री ने किसान व किसान पुत्र के सम्मान के लिये ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा बुलंद किया था। उनका मानना था कि किसान खेत में व उसका सुपुत्र सीमा पर पसीना बहाता है। दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम ने किसान-काश्तकार को अपने हितों के प्रति जागरूक करने व फसल की उचित कीमत के लिये प्रेरित करते हुये कहा था- ‘जिस खेत से मयस्सर ना हो दो जून की रोटी, उस खेत की गोसा-ए-गंदम को जला दो।’ इस प्रकार उन्होंने अंग्रेजी हकूमत को किसान की पीड़ा से अवगत करा कर किसान की फसल के उचित दाम देने की चेतावनी दी थी। चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1978 में गन्ने की बेकदरी व उचित दाम न मिलने से किसान प्रतिनिधि मण्डल को गुस्से में कहा था कि ‘मेरे सिर पर पर गन्ने की बिजाई कर दो’ यानि कि अगर फसल के उचित दाम नही मिलते तो बिजाई क्यों करते हो।
इसी प्रकार उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने किसानों व कृषि सुधार हेतु बंजर भूमि के सुधार हेतु जिप्सम आदि, ऊंची-नीची जमीन को समतल करवाने के लिये भूमि सुधार निगम द्वारा सब्सिडी देकर व सीमांत, छोटे किसानों के लिये छोटे टैक्ट्ररों पर भारी सब्सिडी देकर कृषि व्यवस्था में सुधार किये थे। आज हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में हर 50 किलोमीटर के बाद जमीन का स्तर व जल स्तर बदल चुका है, जिनको उर्वरक, ट्यूववैल व कृषि उपकरणों पर प्रर्याप्त सब्सिडी देकर कृषि की व्यवस्था को सुधारना अति आवश्यक है लेकिन अफसोस व चिंता का विषय है कि अन्नदाता एक साल तक अपने हितो के लिये भीष्ण गर्मी, सर्दी व खराब मौसम में सडक़ पर संघर्ष करता रहा और सरकार द्वारा झूठा सब्जबाग दिखाकर समझोते के तहत आंदोलन समाप्त करा दिया गया उसको बजट से अपने हितों व उचित मांगों के समाधान की काफी उम्मीद की लेकिन न तो कृषि का मुख्य सूत्र एमएसपी पर अपने वायदे अनुसार अब तक कोई समिति बनाई गई और ना ही आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों के लिये किसी मुआवजे का प्रावधान किया गया। यही नहीं, किसानों को एमएसपी दिलवाने के लिए अरुण जेतली द्वारा बनाई गई ‘आशा’ नामक स्कीम को सरकार ने इस साल बंद कर दिया है। इस योजना का बजट घटाते-घटाते पिछले साल 400 करोड़ रुपए किया गया था। इस बार उसे घटाकर मात्र 1 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
बाजार में फसल का ठीक दाम मिल सके उसके लिए सरकार की पीएसएस (प्राइस स्टेबलाइजेशन) और एमआईएस (मार्कीट इंटरवैंशन) स्कीम में पिछले साल खर्च हुआ 3595 करोड़ रुपया लेकिन इस साल का बजट है मात्र 1500 करोड़ रुपया। कृषि और उससे जुड़े हुए क्षेत्रों का कुल बजट पिछले साल के 4.26 प्रतिशत से घटाकर इस वर्ष 3.84 प्रतिशत कर दिया गया है। ग्रामीण विकास का बजट पिछले साल 5.59 प्रतिशत से घटाकर इस वर्ष 5.23 प्रतिशत कर दिया गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट पिछले साल 16000 करोड़ रुपए से घटाकर इस साल 15500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। मनरेगा में पिछले साल खर्च हुआ था 97,034 करोड़ रुपए लेकिन इस साल का बजट है मात्र 72,034 करोड़ रुपया है।
जिस एग्री इंफ्र फंड की बात 2 साल से जोर-शोर से चल रही है उसमें 1 लाख करोड़ रुपए की जगह अब तक मात्र 2600 करोड़ रुपए सेक्शन हुआ है। इसमें सरकार का योगदान पिछले साल 900 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। सरकार को-ऑपरेटिव को समर्थन देने की बात करती है लेकिन फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के लिए बजट पिछले साल 700 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। पराली जलाने को रोकने के लिए किसान को सहायता देने के लिए पिछले साल 700 करोड़ का बजट था जो इस साल घटाकर शून्य कर दिया गया है।
बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि एमएसपी के जरिए किसानों के खाते में 2.37 लाख करोड़ रुपए भेजे जाएंगे। लेकिन बजट में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि सभी किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदी कैसे जाएंगी। फिलहाल हालात ये है कि देश में हरियाणा और पंजाब को छोडक़र देश के बाकि राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्यं पर फसलों की खरीद की हालत बहुत दयनीय है। किसानों को उम्मीद थी कि फर्टिलाइजर्स और कृषि यंत्रों पर सब्सिडी बढ़ाई जाएगी।
बजट में कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने के लिये जरूर कदम उठाने की बात कही गई है परंतु किसानों के रोज काम आने वाले कृषि यंत्रों पर किसी तरह की सब्सिडी या अनुदान की घोषणा नहीं की गई। बिना सरकार की सहायता के किसान, खासकर छोटे और सीमांत किसान किसी भी हाल में खेती में मशीनीकरण को बढ़ावा नहीं दे सकता। कृषि एवं किसानों के विकास हेतु सभी खाद्य पदार्थों एवं फल तथा सब्जियों का न्यूनतम मूल्य कानूनी तौर से निर्धारित करने की आवश्यकता है।
लेखक: डॉ. महेंद्र सिंह मलिक
आईपीएस (सेवानिवृत)