
संगरिया- कृषि विज्ञान केन्द्र, ग्रा. वि. संगरिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा्ॅ. अनुप कुमार, डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा शस्य वैज्ञानिक एवं पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. उमेश कुमार ने ढ़ाबा, भगतपुरा, बोलावाली, लम्बीढ़ाब, नुकेरा एवं चक हिरासिंह वाला क्षेत्र का भ्रमण किया। इस दौरान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को गुलाबी लट के जीवन चक्र, इसकी पहचान तथा इसके नियंत्रण की सलाह दी और कहा कि गुलाबी लट के प्रकोप से नरमा की फसल में काफी नुकसान है। इसमें नरमा का टिण्डा खराब होकर नरमा की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। कपास के मुख्य हानिकारक कीटों में गुलाबी लट इस वर्ष काफी नुकसान कर सकती है। रात को सक्रिय रहने वाले व्यस्क शाम के समय सम्भोंग करते हैं। यह कीट जुलाई से नवम्बर तक सक्रिय रहता है। इस कीट द्वारा पौधे के फूल व टिण्डे खाने के कारण 8-92 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
जीवन चक्र – इस कीट की प्रोढ़ अवस्था यानि कि पतंगे आकार में छोटे व रंग में गहरे भूरे होते हैं। इसके अगली पंखों पर काले धब्बे होते हैं तथा पिछली पंख किनारों से झालरनुमा होती है। हर साल कपास के खेत में गुलाबी लट के पतंगों की पहली पीढ़ी को बोकियों पर या फिर बोकियों के नजदीक टहनियों, छोटी व कच्ची पत्तियों के निचले हिस्सों पर एक-एक करके सफेद चपटे अण्डे देती है। इसके बाद वाली पीढ़ियां अपने अण्डे एक-एक करके ही फूलों के ब्राह््यपुंजदल पर देती है। इस कीट की सूंडी (लट) अवस्था लगभग 12-15 दिन की होती है। सामान्यतौर पर 3-4 दिनों में इन अण्डों से सूंडियां निकलती है। तापमान की अनुकुलता अनुसार यह अण्ड विस्फोटन कम या ज्यादा भी हो सकता है। प्रारंम्भिक अवस्था में सूंडियां क्रीम कलर की होती है परन्तु बाद में इनका रंग गुलाबी हो जाता है। गुलाबी सूंडियां नरमा-कपास की फसल में फूल- गुड्डियों पर हमला करती है। सूंडियों से ग्रसित फूल पूरी तरह नहीं खुलते। नरमा कपास के ये प्रभावित फूल बनावट में फिरकी या गुलाब के फूल जैसे हो जाते हैं। शुरुआत में ही नई सूंडियां छोटे-छोटे टिण्डों में घुसकर कच्चे बीजों को खाती है। टिण्डे में घुमने के लिए बनाये गये अपने सुराख को अपने मल से ही बंद कर देती है। गुलाबी लट का जीवन चक्र 25-31 दिन का होता है तथा एक वर्ष में 5-6 पीढ़ी पूर्ण करती है।
नरमें के खेत में गुलाबी लट के कारण खराब फूल 10 प्रतिशत या हरे टिण्डे में नुकसान 10 प्रतिशत या फेरोमोन ट्रेप में 5-8 नर पतंगे प्रतिदिन आने पर स्प्रे करना चाहिए। इसके रोकथाम के लिए केन्द्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. उमेश कुमार ने किसानों को बताया कि नरमा की फसल अगर 120 दिन से कम है तो प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 2 मिली. या इमोमेक्लिन बेंजोएट 5 एस.जी. 0.50 ग्राम या क्लोरापायरिफास 20 ई.सी. 2 मिली. या क्युनालफास 25 ई.सी. की 2 मिली. या थायोडिकार्ब 75 डब्लु.पी. 1.5 ग्राम या इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. की 1 मिली. का प्रति लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव करें।
फसल 120 दिन से अधिक की होने पर इथियोन 50 ई.सी. 3 मिली. या फेनवेलरेट 20 ई.सी. 1 मिली. या साईपरमेथ्रिन 10 ई.सी. 1 मिली. या साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. 0.50 मिली. या लेम्डासायहलेथ्रिन 5 ई.सी. 1 मिली. या डेल्टामेथ्रिन 2-8 ई.सी. 1 मिली. या अल्फामेथ्रिन 10 ई.सी. 0.50 मिली. या फेनप्रोथ्रिन 10 ई.सी. 1.50 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
नरमें में गुलाबी लट के नियंत्रण हेतु एक ही रासायनिक दवा का बार-बार प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा 120 दिन से पहले फसल में सिन्थेटिक पायरोेथ्राईडस का स्प्रे करने से सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ता है। अतः इनका स्प्रे 120 दिन की फसल होने पर ही करना चाहिए। किसानों को सलाह दी जाती है कि सुबह या शाम के समय खेत में कीट व बिमारियों की नियमित निगरानी कर ही स्प्रे का प्रयोग करें और कृषि विज्ञान केन्द्र, संगरिया व कृषि विभाग से सम्पर्क व सलाह से ही नरमें में कीटनाश्कों का छिड़काव करें।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष